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नि त्वा॑ दधे॒ वरे॑ण्यं॒ दक्ष॑स्ये॒ळा स॑हस्कृत। अग्ने॑ सुदी॒तिमु॒शिज॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ni tvā dadhe vareṇyaṁ dakṣasyeḻā sahaskṛta | agne sudītim uśijam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि। त्वा॒। द॒धे॒। वरे॑ण्यम्। दक्ष॑स्य। इ॒ळा। स॒हः॒ऽकृ॒त॒। अग्ने॑। सु॒ऽदी॒तिम्। उ॒शिज॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:29» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहस्कृत) बलकारक (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजयुक्त पुरुष ! जैसे मैं (इळा) उत्तम उपदेश वा उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न आदि से (दक्षस्य) पराक्रम के (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (सुदीतिम्) उत्तम विज्ञान के प्रकाश से युक्त (उशिजम्) उत्तम गुणों के प्रचार की कामना करनेवाले (त्वा) आपको (नि) निश्चय से (दधे) धारण करूँ, वैसे ही आप मुझको विद्या का पात्र करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्यार्थी जन अध्यापक लोगों की इच्छा के अनुसार कर्म्मों को कर प्रसन्न रखते हैं, वैसे ही अध्यापक लोग विद्यार्थियों की इच्छा के अनुकूल उत्तम गुणों को देकर प्रसन्न करें ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सहस्कृताऽग्ने ! यथाऽहमिळा दक्षस्य वरेण्यं सुदीतिमुशिजं त्वा निदधे तथैव त्वं मां विद्यानिधिं सम्पादय ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नि) निश्चये (त्वा) त्वाम् (दधे) दधेय (वरेण्यम्) स्वीकर्त्तुं योग्यम् (दक्षस्य) बलस्य (इळा) प्रशंसितेनोपदेशेन सुसंस्कृतेनाऽन्नादिना वा (सहस्कृत) सहो बलं कृतं येन तत्सम्बुद्धौ (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (सुदीतिम्) सुष्ठुविज्ञानप्रकाशयुक्तम् (उशिजम्) सद्गुणप्रचारं कामयमानम् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्यार्थिनोऽध्यापकानामिच्छानुकूलानि कर्माणि कृत्वा प्रसन्नान्रक्षन्ति तथैवाऽध्यापका विद्यार्थिनामिच्छानुकूलाञ्छुभान्गुणान्दत्वा प्रसादयन्तु ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे विद्यार्थी अध्यापकाच्या इच्छेनुसार काम करून त्यांना प्रसन्न ठेवतात, तसेच अध्यापकांनीसुद्धा विद्यार्थ्यांना इच्छेनुकूल उत्तम गुण देऊन प्रसन्न करावे. ॥ १० ॥